Author Details

Pen Name:'aKHtar'
Real Name:Mohammad Dawood Khan
Born:01 May 1905 | Tonk, Rajasthan
Died:01 Sep 1948
Relatives:Mazhar Mahmood Shirani (Son)
One of the most popular Urdu poets ever, known for his intense romantic poetry.One of the most popular Urdu poets ever, known for his intense romantic poetry.
जब कहीं दो गज़ ज़मीं देखी ख़ुदी समझा मैं गोर
जब नई दो चादरें देखीं कफ़न याद आ गया
कूज़ा-गर ने जब मेरी मिटी से की तख़्लीक़-ए-नौ
हो गए ख़ुद जज़्ब मुझ में आग और पानी हवा
ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है
ये वो ख़िज़ाँ है जो डूबी हुई बहार में है
मैं शाख़-ए-सब्ज़ हूँ मुझ को उतार काग़ज़ पर
मिरी तमाम बहारों को बे-ख़िज़ाँ कर दे
More Shayari
Motivational Shayari

लिबास-ए-काबा का हासिल किया शरफ़ उस ने
जो कू-ए-यार में काली कोई घटा आई
~ Haider Ali Aatish
लक्ष्य को पाने के लिए यदि हम तन, मन और धन लगा देते हैं,
सच कहता हूं दोस्तों, कुंडली के सितारे भी अपनी जगह बदल देते हैं।

लिबास-ए-काबा का हासिल किया शरफ़ उस ने
जो कू-ए-यार में काली कोई घटा आई
~ Haider Ali Aatish
जुनूँ के शहर में नीं कम-अयार कूँ हुर्मत
मैं नक़्द-ए-क़ल्ब कूँ काँटे में दिल के तोल चुका

लिबास-ए-काबा का हासिल किया शरफ़ उस ने
जो कू-ए-यार में काली कोई घटा आई
~ Haider Ali Aatish

लिबास-ए-काबा का हासिल किया शरफ़ उस ने
जो कू-ए-यार में काली कोई घटा आई
~ Haider Ali Aatish
Festival Shayari

कहने लगे अब आइए सर पर है त्यौहार
घर मेरा नज़दीक है तारों के उस पार
कहने लगे अब आइए सर पर है त्यौहार
घर मेरा नज़दीक है तारों के उस पार
~ Bhagwan Das Ijaz
कहने लगे अब आइए सर पर है त्यौहार घर मेरा नज़दीक है तारों के उस पार ~ Bhagwan Das Ijaz

अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर
~ Mushafi Ghulam Hamdani
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर ~ Mushafi Ghulam Hamdani

तुम्हारी तो दिवाली है,
लेकिन मेरी जिंदगी तो तुमने होली कर दी है…!!
तुम्हारी तो दिवाली है,
लेकिन मेरी जिंदगी तो तुमने होली कर दी है…!!
~ अज्ञात
तुम्हारी तो दिवाली है, लेकिन मेरी जिंदगी तो तुमने होली कर दी है…!! ~ अज्ञात

जब देश में थी दिवाली, वो झेल रहे थे गोली
जब हम बैठे थे घरों में, वो खेल रहे थे होली
जब देश में थी दिवाली, वो झेल रहे थे गोली
जब हम बैठे थे घरों में, वो खेल रहे थे होली
~ अज्ञात
जब देश में थी दिवाली, वो झेल रहे थे गोली जब हम बैठे थे घरों में, वो खेल रहे थे होली ~ अज्ञात

'आली' अब के कठिन पड़ा दीवाली का त्यौहार
हम तो गए थे छैला बन कर भय्या कह गई नार
'आली' अब के कठिन पड़ा दीवाली का त्यौहार
हम तो गए थे छैला बन कर भय्या कह गई नार
~ Couplets of Jamiluddin Ali
'आली' अब के कठिन पड़ा दीवाली का त्यौहार हम तो गए थे छैला बन कर भय्या कह गई नार ~ Couplets of Jamiluddin Ali

अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर
~ Mushafi Ghulam Hamdani
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर ~ Mushafi Ghulam Hamdani

अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर
~ Mushafi Ghulam Hamdani
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर

जब देश में थी दिवाली, वो झेल रहे थे गोली
जब हम बैठे थे घरों में, वो खेल रहे थे होली
~ अज्ञात
जब देश में थी दिवाली, वो झेल रहे थे गोली जब हम बैठे थे घरों में, वो खेल रहे थे होली

'आली' अब के कठिन पड़ा दीवाली का त्यौहार
हम तो गए थे छैला बन कर भय्या कह गई नार
~ Couplets of Jamiluddin Ali
'आली' अब के कठिन पड़ा दीवाली का त्यौहार हम तो गए थे छैला बन कर भय्या कह गई नार

अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर
~ Mushafi Ghulam Hamdani
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह चढ़ते नहीं मुर्ग़ान-ए-शिकम-सेर हवा पर
यहाँ पढ़ें खुशियों से भरी शायरी, जो आपके दिल को छू जाएगी और चेहरे पर मुस्कान लाएगी।

दुख में खुशी की वजह बनती है मोहब्बत, दर्द में यादों की वजह बनती है मोहब्बत।
जब कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमें दुनिया में, तब हमारे जीने की वजह बनती है मोहब्बत।
~ अज्ञात
दुख में खुशी की वजह बनती है मोहब्बत, दर्द में यादों की वजह बनती है मोहब्बत। जब कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमें दुनिया में, तब हमारे जीने की वजह बनती है मोहब्बत।
“हर खुशी, खुशी मांगे आपसे, जिंदगी, जिंदा दिली मांगे आपसे, उजाला हो मुकद्दर में आपके इतना, कि चाँद भी रोशनी मांगे आपसे…
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़ लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चराग़
Funny Shayari
अज्ञात

जिंदगी एक बार ही सही
लेकिन ऐसे शख्स से जरूर मिलाती है
जो तुम्हारी अच्छी खासी जिंदगी का
सत्यानाश कर देता है!
खैर, वो तुम नहीं हो दोस्त!
~ अज्ञात

थोड़े दिन का इश्क़ हम नहीं किया करते,
शहर का आशिक हूँ, यूँ ही किसी से प्यार किया नहीं करते।
~ अज्ञात
थोड़े दिन का इश्क़ हम नहीं किया करते, शहर का आशिक हूँ, यूँ ही किसी से प्यार किया नहीं करते।

हमें आदत नहीं हर एक पे मर मिटने की,
तुझे में बात ही कुछ ऐसी थी दिल ने सोचने की मोहलत ना दी…..!!!
~ अज्ञात
हमें आदत नहीं हर एक पे मर मिटने की, तुझे में बात ही कुछ ऐसी थी दिल ने सोचने की मोहलत ना दी…..!!!

तुमने तो कहा था कि, हर शाम हाल पूछेंगे,
तुम बदल गए हो कि, तुम्हारे शहर शाम नहीं होती।
~ अज्ञात
तुमने तो कहा था कि, हर शाम हाल पूछेंगे, तुम बदल गए हो कि, तुम्हारे शहर शाम नहीं होती।

मैं वहां जाकर भी मांग लूं तुझे,
कोई बता दे कुदरत के फैसले कहां होते हैं !
~ अज्ञात
मैं वहां जाकर भी मांग लूं तुझे, कोई बता दे कुदरत के फैसले कहां होते हैं !

एक शर्त पर खेलूँगा ये प्यार की बाज़ी,
मैं जीतू तो तुझे पाऊँ, और हारूँ तो तेरा हो जाऊ……!!!
~ अज्ञात
एक शर्त पर खेलूँगा ये प्यार की बाज़ी, मैं जीतू तो तुझे पाऊँ, और हारूँ तो तेरा हो जाऊ……!!!
अज्ञात
मोहब्बत भी अजीब खेल खेलती है, दिल किसी और का, और दर्द किसी और को देती है।
View Shayariअज्ञात
कई बार जिंदगी में हमें सफर अकेले ही तय करना पड़ता है, चाहे हमारे साथ कितने भी लोग हों।
View Shayariअज्ञात
“कभी-कभी दिल को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि जिसे हम चाह रहे हैं, वो हमारा नहीं है।”
View Shayariवसीम बरेलवी
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती
View Shayariहांथ पैरपै मुंहमुं नाक से ले कर दादा दादी चाचा चाची बहन भाई रोना हंसहं ना तक सिखाती है।है
वो एक मां हीं है जो अपने बच्चेको एक गुरु के लायक बनाती है।।है
~ अज्ञातये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ
इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा
~ Munawwar Ranaजिंदगी का सबसे अच्छा खयाल हो तुम,
जिंदगी का सबसे अच्छा खयाल हो तुम, इश्क़ और इबादत दोनों में बेमिसाल हो तुम…!!
अज्ञातटूटे ख्वाबों के सहारे, जी रहा हूं मैं,
टूटे ख्वाबों के सहारे, जी रहा हूं मैं, तेरी बेवफाई ने, जीना मुहाल कर दिया।
अज्ञातदिमाग पर जोर लगाकर गिनते हो गलतियां मेरी
दिमाग पर जोर लगाकर गिनते हो गलतियां मेरी कभी दिल पर हाथ रखकर पूछना कसूर किसका था…
अज्ञातकभी ग़म तो कभी तन्हाई मार गयी,
कभी ग़म तो कभी तन्हाई मार गयी, कभी याद आकर उनकी जुदाई मार गयी, बहुत टूट कर चाहा जिसको हमने, आखिर में उनकी ही बेवफाई मार गयी !!
अज्ञातजिनकी चैन से गुजरतीं हो रातें
जिनकी चैन से गुजरतीं हो रातें वो हमसे बात क्या करेंगे जिनके हो हजारो चाहने वाले वो भला हमें याद क्या करेंगे
अज्ञातकोई मिला ही नहीं जिसको वफा देते,
कोई मिला ही नहीं जिसको वफा देते, हर एक ने दिल तोड़ा किस-किस को सजा देते…!!
अज्ञातमेरे तो दर्द भी औरों के काम आते है
मेरे तो दर्द भी औरों के काम आते है मैं रो पड़ूं तो कई लोग मुस्कुराते हैं
अज्ञात
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"शब्द वो पुल हैं, जो दिलों को जोड़ते हैं।"













































